अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) हिंदू धर्म का एक प्रमुख व्रत है, जिसे महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती हैं। यह व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह व्रत मातृत्व की गहराई और संतान के प्रति अटूट प्रेम को दर्शाता है।
अहोई अष्टमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
2025 में अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) का व्रत 13 अक्टूबर की आधी रात से शुरू होकर 14 अक्टूबर को समाप्त होगा। इस दिन महिलाएं सुबह से ही निर्जला उपवास करती हैं और शाम को अहोई माता की पूजा करती हैं। अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) का पारण तारों को अर्घ्य देकर किया जाता है।
अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) का व्रत केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से भी विशेष है। माना जाता है कि अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) करने वाली माताओं की संतान को दीर्घायु और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन माता अहोई की पूजा करने से पारिवारिक जीवन में शांति आती है और संतान के सभी कष्ट दूर होते हैं।
जैसे माँ चंद्रघंटा की पूजा से साहस और शक्ति मिलती है, उसी प्रकार अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) संतान की सुरक्षा और दीर्घायु का आशीर्वाद देती है।

अहोई अष्टमी की व्रत विधि
- अहोई अष्टमी की सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें।
- दीवार पर अहोई माता और सात तारों का चित्र बनाएं।
- पूजा सामग्री जैसे जल, दीपक, रोली, अक्षत, फूल और मिठाई तैयार करें।
- कथा सुनते समय सात प्रकार के अनाज अपनी हथेली पर रखें।
- पूजा के बाद इन अनाजों को गाय को अर्पित करें।
- रात को तारों को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करें।
कई लोग अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) के साथ-साथ सिद्धिदात्री माता की आराधना भी करते हैं ताकि जीवन में सफलता और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे।
यदि आप अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) का व्रत पहली बार कर रही हैं, तो पूजा के समय अपने बच्चे को पास बैठाएं। कथा सुनते हुए सात अनाज अपनी हथेली पर रखें और माता अहोई से प्रार्थना करें। जब आप अपने बच्चे को प्रसाद खिलाती हैं, तो आपके भीतर मातृत्व का एक अनोखा भाव जागता है। यही अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) का सबसे बड़ा महत्व है।
तिथि और ज्योतिषीय महत्व
यह उपवास कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस दिन का ज्योतिषीय महत्व भी बहुत गहरा है। अष्टमी तिथि को चंद्रमा और तारों की विशेष स्थिति मानी जाती है, जिससे संतान की सुरक्षा और लंबी आयु का आशीर्वाद मिलता है।
अहोई अष्टमी की कथा
प्राचीन कथा के अनुसार, एक साहूकारिन जंगल में मिट्टी खोद रही थी। अनजाने में उसने एक शावक को चोट पहुँचा दी, जिससे उसका जीवन समाप्त हो गया। इसके परिणामस्वरूप उसके बच्चे भी एक-एक करके मरने लगे। दुखी होकर उसने अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) का व्रत किया। माता अहोई की कृपा से उसके पुत्र सुरक्षित हो गए। तब से अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) को संतान की रक्षा और लंबी आयु के लिए विशेष रूप से मनाया जाने लगा।
गाँव की एक महिला ने अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) का व्रत रखा। दिनभर निर्जला रहकर उसने माता अहोई की पूजा की। रात को तारों को अर्घ्य देने के बाद उसके बीमार बेटे की हालत सुधर गई। गाँव वालों ने इसे माता का चमत्कार माना और तब से अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) को संतान की रक्षा के लिए अत्यंत शुभ माना जाने लगा।
अहोई अष्टमी पर करने योग्य कार्य
- अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) पर महिलाएं निर्जला उपवास करती हैं।
- पूजा में अहोई माता, गणेशजी और सप्त ऋषियों का ध्यान करना चाहिए।
- व्रत के दौरान संतान को अपने पास बैठाना शुभ माना जाता है।
- पूजा समाप्त होने पर सबसे पहले बच्चों को प्रसाद खिलाना चाहिए।
अहोई अष्टमी पर वर्जित कार्य
- अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) पर नुकीले उपकरणों जैसे सुई या कैंची का उपयोग न करें।
- इस दिन मिट्टी से जुड़े काम जैसे बागवानी से बचना चाहिए।
- किसी भी व्यक्ति का अपमान या झगड़ा करने से व्रत का फल कम हो सकता है।
- तारों को अर्घ्य देते समय स्टील के लोटे का ही प्रयोग करें।
इसी सोच के साथ आप माँ शैलपुत्री मंत्र जैसे अन्य लेख भी पढ़ सकते हैं, जो भक्ति को और गहराई से समझने में मदद करते हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारतीय धर्मग्रंथों और पुराणों में विभिन्न उपवास और अनुष्ठानों का वर्णन मिलता है। इनमें कुछ व्रत विशेष रूप से मातृत्व और संतान की सुरक्षा से जुड़े हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि इन व्रतों के माध्यम से माँ अपने बच्चों के लिए सकारात्मक ऊर्जा और दैवीय आशीर्वाद प्राप्त करती है।
अहोई अष्टमी पर विशेष सावधानियां
- इस दिन घर में पवित्रता और शांति बनाए रखें।
- पूजा के बाद ब्राह्मण और जरूरतमंदों को भोजन कराएं।
- अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) की आरती और कथा का पाठ करना आवश्यक है।
- व्रत के दौरान नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
निष्कर्ष
अहोई अष्टमी का व्रत माताओं की संतान के प्रति सच्ची भावनाओं का प्रतीक है। इस दिन की गई पूजा से संतान को लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) केवल धार्मिक रीति-रिवाज नहीं, बल्कि परिवार की मजबूती और मातृत्व के प्रेम की अनमोल परंपरा है।
अहोई अष्टमी (ahoi Ashtami) से जुड़े सवाल (FAQs)
Q1. अहोई अष्टमी का व्रत कैसे किया जाता है?
अहोई अष्टमी पर महिलाएं सुबह स्नान कर संकल्प लेती हैं, दिनभर निर्जला उपवास करती हैं और शाम को तारों को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करती हैं।
Q2. अहोई अष्टमी पर किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
इस दिन भूमि खोदने, नुकीली वस्तुओं का प्रयोग, झगड़ा और कटु वचन बोलने से बचना चाहिए। पूजा में शुद्धता और नियमों का पालन करना जरूरी है।
Q3. व्रत के दौरान कौन-सा भोजन किया जा सकता है?
दिनभर हल्का आहार, फल और दूध लिया जा सकता है। तामसिक भोजन और नमक का सेवन वर्जित है।
Q4. यह व्रत अविवाहित महिलाएं भी रख सकती हैं?
हाँ, अविवाहित महिलाएं भी इसे रख सकती हैं। यह पारिवारिक भलाई, जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और भविष्य की खुशहाली के लिए लाभकारी है।
Q5. व्रत करने से क्या आध्यात्मिक लाभ होते हैं?
व्रत से मानसिक शांति, सकारात्मक ऊर्जा और मातृत्व के भाव को मजबूती मिलती है। यह परिवार और समाज में आपसी सहयोग और एकता भी बढ़ाता है।