Somnath Jyotirlinga: शिवभक्ति, इतिहास और आत्मगौरव की जीवंत गाथा

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

हिंदू धर्म ग्रंथों में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की असीम महिमा है । इनका स्मरण मात्र ही हमारे जीवन में उजाला भर देता है। जिसका नाम सुनते ही मन में भाव जग जाता है कि काश हम भी ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य बना सकें लेकिन इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का सौभाग्य उसी को मिल पाता है । जिस पर भगवान भोलेनाथ की असीम कृपा हो जाती है । आज हम आपको गुजरात से सौराष्ट्र में स्थित श्री Somnath Jyotirlinga की महिमा का विस्तार से बताते हैं ।

ज्योतिर्लिंग का अर्थ ज्योति का लिंग है जो भगवान शिव की दिव्य ज्योति को प्रतिष्ठित करता हैं । ऐसा कहा जाता है कि इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से भक्तों के सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं । देश में शिव के जो बारह ज्योतिर्लिंग है उनके बारे में मान्यता है कि अगर सुबह उठकर सिर्फ एक बार भी बारहों ज्योतिर्लिंगों का नाम जाप कर लिया जाए तो जीवन में खुशहाली आती है और संकटों और कष्टों से छुटकारा मिलता है ।

हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रकट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है । देश विदेश में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं । जिनके नाम इस प्रकार हैं ।

– श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
– श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
– श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
– श्रीॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
– श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
– श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
– श्री त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
– श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
– श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
– श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग
– श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री Somnath Jyotirlinga: शिवभक्ति, इतिहास और आत्मगौरव का प्रतीक

भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में प्रथम Somnath Jyotirlinga न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय इतिहास, संस्कृति और स्वाभिमान का भी प्रतीक है। यह मंदिर गुजरात राज्य के गिर सोमनाथ जिले के प्रभास पाटन नामक स्थान पर, अरब सागर के तट पर स्थित है। इस मंदिर की दिव्यता, हर श्रद्धालु को अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव कराती है ।

पौराणिक कथा: चंद्रदेव का उद्धार

Somnath Jyotirlinga से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा चंद्रदेव की है । कथा के अनुसार राजा दक्ष की 27 पुत्रियां थी । सभी का विवाह चंद्रदेव से हुआ । कहा जाता है कि चंद्रदेव सबसे अधिक रोहिणी से प्रेम करता था । प्रजापति दक्ष इससे नाराज हो गए और उन्होंने चंद्रमा को क्षय रोग का शाप दे दिया जिससे उनका तेज घटने लगा । तब चंद्रदेव ने प्रभास तीर्थ पर आकर भगवान शिव की कठोर साधना की । चंद्रदेव की तपस्या से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और उन्हें दक्ष के शाप से मुक्ति प्रदान की और यहीं पर ज्योतिर्लिंग रूप में प्रतिष्ठित हो गए । तभी से इस स्थान को “सोमनाथ” यानी “चंद्रमा (सोम) के स्वामी” कहा जाने लगा।

ज्योतिर्लिंग की महिमा

ज्योतिर्लिंग का अर्थ है “प्रकाश का प्रतीक शिव”। सोमनाथ पहला ज्योतिर्लिंग है, जिसकी महिमा पुराणों और शास्त्रों में अत्यधिक वर्णित है। यह माना जाता है कि यह लिंग स्वयंभू है – अर्थात इसकी स्थापना किसी ने नहीं की, बल्कि यह स्वयमेव प्रकट हुआ।

ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता विवाद


शिव पुराण में वर्णन है कि जब ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ, तब शिवजी ने एक अनंत प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट होकर दोनों के अहंकार को समाप्त किया । यह प्रकाशस्तंभ ही ज्योतिर्लिंग कहलाया। सोमनाथ उसी दिव्य तेज का पहला प्रकट स्थल है।

इतिहास : निर्माण, विध्वंस और पुनर्निर्माण की गाथा

सोमनाथ मंदिर का इतिहास जितना गौरवशाली है, उतना ही संघर्षपूर्ण भी । मुस्लिम आक्रांता महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार हमले किए । आखिरी हमला सोमनाथ मंदिर पर किया । गजनवी ने सोमनाथ मंदिर की महिमा और उसमें अथाह धन सपंदा के बारे में सुन रखा था । मजमूद गजनवी सोमनाथ मंदिर में लूटपाट कर काफी सोना व अन्य कीमती सामान अपने साथ ले गया था । उसने सोमनाथ मंदिर से 6 टन सोना, हीरे जवाहरात जड़ा शिवलिंग, मंदिर का द्वार भी ले गया था जिसे गजनी में खड़ा किया गया । इसके अलावा हीरे-जवाहरात भी अपने साथ ले गया था । इसकी कीमत 5 अरब रुपये से ज्यादा बताई जाती है । यह मंदिर महमूद गजनवी के बाद भी मुस्लिम आक्रांताओं का शिकार बनता रहा ।

भौगोलिक विशेषता: समुद्र के संग शिवधाम

1947 में भारत की आज़ादी के बाद, सरदार वल्लभभाई पटेल ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। यह आज भी भारत के आत्मगौरव और आस्था का प्रतीक बना हुआ है । यह मंदिर अरब सागर के किनारे पर स्थित है । यहां एक स्तंभ है जिसे “बाण स्तंभ” कहते हैं – इस पर लिखा है कि “इस बिंदु के दक्षिण में कोई भी भू-भाग नहीं है, केवल समुद्र है।” इसका अर्थ है – यह स्थल भारत का अंतिम किनारा है और यह सनातन संस्कृति की सीमाओं को दर्शाता है।

धार्मिक महत्व और दर्शन का पुण्य

महाशिवरात्रि, श्रावण मास, सोमवती अमावस्या, और कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं । मान्यता है कि यहाँ एक बार दर्शन करने से जन्म-जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं । इस मंदिर में दर्शन मात्र से चित्त शांत हो जाता है, और आत्मा को एक विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा की अनुभूति होती है। श्रावण मास में यहाँ विशेष पूजा और अभिषेक होते हैं। मंदिर में प्रतिदिन 3 बार प्रातः, दोपहर और रात्रि में आरती होती है ।मंदिर परिसर में ध्वनि और प्रकाश शो (Light & Sound Show) भी होता है, जो इस स्थान के इतिहास को जीवंत रूप में प्रस्तुत करता है।

निष्कर्ष

सोमनाथ केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह हिंदू संस्कृति, गौरव और आत्मबल का एक जीवंत प्रतीक है। यह मंदिर सिखाता है कि चाहे कितनी भी बार कोई हमें गिराने की कोशिश करे, हमारी आस्था और शक्ति हमें फिर से उठने का बल देती है। हम आपको 12 ज्योतिर्लिंगों की कहानी और महातम बताएंगे तो हमारे साथ जुड़े रहिए ।

अगर आप कभी गुजरात जाएं, तो Somnath Jyotirlinga के दर्शन अवश्य करें — यह केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मिक अनुभव है।

भक्ति की यात्रा जारी रखें अगला ब्लॉग यहाँ से पढ़ें:- Kedarnath Jyotirlinga की उत्पत्ति और पंच केदार का रहस्य​

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