कृष्ण Pootna कथा: कैसे भगवान ने राक्षसी को मोक्ष प्रदान किया

Pootna

भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की जब बात आती है तो Pootna राक्षसी का वर्णन ना हो ऐसा नहीं हो सकता। Pootna ने श्रीकृष्ण को मारने का प्रयास किया लेकिन वह मारी गई । भागवत पुराण और कई पुराणों में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण और Pootna की कथा विशेष रूप से प्रसिद्ध है क्योंकि इसमें भगवान का बालरूप और उनकी दिव्य शक्ति एक साथ दिखाई देती है।

मथुरा नगरी के अत्याचारी राजा कंस के जीवन में भय का बीज उस दिन बोया गया जब उसकी बहन देवकी का विवाह वासुदेव से हुआ। विवाह के समय आकाशवाणी हुई — “हे कंस! जिस बहन को तू इतने प्रेम से विदा कर रहा है, उसी का आठवां पुत्र तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।” यह वाणी सुनते ही कंस का चेहरा क्रोध और भय से विकृत हो गया। क्षणभर में भाई का प्रेम समाप्त हो गया और उसने तलवार खींचकर अपनी ही बहन की हत्या का निश्चय कर लिया। वासुदेव ने बुद्धिमानी से उसे वचन दिया कि देवकी से जितने भी संतान होंगे, वह उन्हें स्वयं कंस के हाथों सौंप देंगे। कंस ने यह शर्त मानकर उन्हें जीवित छोड़ दिया, किंतु उन्हें मथुरा के कारागार में बंद कर दिया।

समय बीतता गया, और देवकी के छह पुत्र कंस के हाथों मारे गए। सातवाँ गर्भ भगवान की योगमाया से वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित हो गया और बलराम के रूप में जन्मा। देवकी के आठवें पुत्र रूप में भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में जन्म लिया। भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आधी रात के समय जैसे ही श्रीकृष्ण ने जन्म लिया तो वर्षा की गर्जना और बिजली की चमक के बीच, कारागार के दरवाजे स्वयं खुल गए और पहरेदार गहरी नींद में सो गए। वासुदेव ने नवजात कृष्ण को टोकरी में रखा और यमुना के उफनते वेग को पार कर गोकुल में नंद बाबा के घर पहुँचे, जहाँ यशोदा ने योगमाया के रूप में एक कन्या को जन्म दिया था। उन्होंने दोनों शिशुओं की अदला-बदली की और लौटकर कारागार में आ गए।

सुबह होते ही कंस को समाचार मिला कि देवकी के घर कन्या हुई है। उसने उस कन्या को पकड़कर पत्थर पर पटकना चाहा, लेकिन वह उसकी पकड़ से छूटकर आकाश में चली गई और देवी के रूप में प्रकट होकर बोली — “अरे मूर्ख! तेरा वध करने वाला जन्म ले चुका है और किसी अन्य स्थान पर है।” यह सुनते ही कंस भयभीत हो उठा। उसने अपने गुप्तचरों, असुरों और राक्षसों को चारों दिशाओं में भेजा कि वे नवजात शिशुओं को खोजकर मार डालें।

इन्हीं दुष्टों में एक थी Pootna। वह एक भयंकर राक्षसी थी, मायावी विद्या में इतनी निपुण कि जब चाहे, किसी सुंदर स्त्री का रूप धारण कर ले। Pootna कंस की विश्वासपात्र और गुप्तचर थी। कंस ने उसे विशेष रूप से आदेश दिया, “गोकुल में एक दिव्य बालक जन्मा है, उसे किसी भी कीमत पर मार डालो।” कंस की आज्ञा मानकर Pootna ने अपने असली रूप को छोड़कर स्वर्ग की अप्सरा-सी सुंदर स्त्री का रूप ले लिया। वह नंद बाबा के आँगन में पहुँची, जहाँ नन्हा कृष्ण पालने में लेटे थे। यशोदा और रोहिणी उसे देख मुग्ध हो गईं। Pootna ने मधुर स्वर में कहा, “अरे कितना सुंदर बालक है, इसे तो गोद में लेने का मन कर रहा है।” यशोदा, जिन्हें वह देवी तुल्य सुंदरी लगी, बिना शंका किए कृष्ण को उसकी गोद में दे देती हैं।

Pootna के मन में एक ही योजना थी — अपने स्तनों पर घोर विष लगाकर कृष्ण को दूध पिलाना और तुरंत मार देना। वह बालकृष्ण को लेकर बैठ गई और उन्हें अपने स्तनों से लगा लिया। कृष्ण ने न केवल दूध पिया बल्कि Pootna के प्राण भी चूसने लगे। वह अपने असली राक्षसी रूप में आ गई — बारह योजन (लगभग कई किलोमीटर) लंबा शरीर, विशाल हाथ-पाँव, भयानक चेहरा, रक्तमिश्रित आँखें, और लोहे जैसे दाँत। वह पीड़ा से चिल्लाती हुई गोकुल से बाहर भागी, किंतु कुछ ही क्षणों में गिरकर प्राण छोड़ दिए।

Pootna के मरते ही गोकुल में हाहाकार मच गया। नंद बाबा, यशोदा और सभी गोप-गोपियाँ भयभीत हो दौड़े। उन्होंने देखा कि उनका नन्हा कान्हा Pootna के निर्जीव शरीर पर खेल रहा है, मानो कुछ हुआ ही न हो। आश्चर्य की बात यह थी कि उस विशालकाय मृत शरीर से दुर्गंध के स्थान पर चंदन और पुष्प जैसी मधुर सुगंध आ रही थी। भगवान श्रीकृष्ण ने Pootna को केवल मृत्यु ही नहीं दी, बल्कि उसे मोक्ष भी प्रदान किया। उन्होंने उसे अपनी माता के समान माना, क्योंकि उसने उन्हें स्तनपान कराया था — चाहे वह विष से भरा था, पर मातृत्व का स्पर्श उन्होंने स्वीकार किया। Pootna वैकुण्ठ धाम को प्राप्त हुई। यह घटना इस बात का प्रमाण है कि भगवान किसी भी जीव के छोटे से छोटे सत्कर्म को अनदेखा नहीं करते, चाहे वह पापमय जीवन में क्यों न हुआ हो।

Pootna की पूर्वजन्म की कथा
पिछले जन्म में राजा बलि की पुत्री थी Pootna । उसका नाम रत्नमाला था। पौराणिक एक कथा के अनुसार एक दिन राजा बलि के यहां एक भगवान विष्णु वामन रूप में याचक बनकर पाधरे। वामन की सुंदर और मनमोहक छवि देखकर रत्नमाला के मन में ममता का भाग जाग उठा। भगवान वामन को देखकर वह मन ही मन सोचने लगी कि काश मेरा भी ऐसा ही पुत्र हो। वामन रूप में भगवान ने उसके मन की इच्छा को जानकर तथास्तु कहा । इसके बाद भगवान ने राजा बलि का अहंकार दूर करने के लिए तीन पग में भूमि नाप दी। राजा समझ गए और अपनी गलती का उन्हें अहसास हो गया। राजा ने वामनदेव से क्षमा मांगी। इस घटना को रत्नमाला दूर से देख रही थीं। रत्नमाला को प्रतीत हुआ कि उसके पिता का घोर अपमान हुआ है। इससे वह बुरी तरह से क्रोधित हो गई । उसके मन में वामन के प्रति बुरे विचार आ गए तो उसने वामन को बुरा बोलना शुरू कर दिया । उसके मन में विचार आया कि यदि ऐसा मेरा पुत्र होता तो मैं उसे जहर दे देती। भगवान ने उसके इस भाव को भी जानकर तथास्तु कह दिया। यही राजा बलि की पुत्री रत्नमाला थी जो द्वापर युग में Pootna बनी ।

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