Naag Panchami 2025: पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और पौराणिक कथा

Nag Panchami का पर्व नागों को समर्पित है । हिंदू धर्म में नागपंचमी का बहुत महत्व है । साल 2025 में Nag Panchami 29 जुलाई मंगलवार को मनाई जा रही है । Nag Panchami की पूजा का शुभ मुहूर्त 29 जुलाई की सुबह 6 बजकर 14 मिनट से 8 बजकर 50 मिनट तक रहेगा । इस दिन नाग देवता के साथ भगवान शिव की भी विशेष पूजा का विधान । कहते हैं इस दिन नाग देवता के दर्शन हो जाएं तो बहुत ही शुभ होता है
इस बार Naag Panchami पर खास संयोग
इस बार Nag Panchami पर तीन शुभ योग बन रहे हैं – शिव योग, रवि योग और लक्ष्मी योग।
साथ ही, सावन का मंगलवार होने के कारण मंगला गौरी व्रत का भी विशेष संयोग बन रहा है।
ऐसे समय में किया गया जप, तप और व्रत विशेष फलदायक माना जाता है।
जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, उनके लिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है।
इस दिन नाग देवता की पूजा करने से कालसर्प दोष का प्रभाव कम होता है।
Nag Panchami नाग देवताओं को सम्मान देने और उनकी कृपा प्राप्त करने का पर्व है।
कहा जाता है कि इस दिन पूजा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
Naag Panchami पर पूजा विधि (Nag Panchami Puja Vidhi)
सवेरे स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
एक लकड़ी की चौकी लेकर उस पर लाल कपड़ा बिछाएं।
नाग देवता की मूर्ति या आटे से बने नाग को स्थापित करें।
नाग देवता को दूध, जल, हल्दी, चावल, फूल, रोली और मिठाई चढ़ाएं।
नाग देवता की प्रतिमा पर दूध से अभिषेक करें।
पूजन में हुई गल्तियों के लिए क्षमा मांगें।
“ॐ नागदेवाय नमः” मंत्र का जप करें।
Nag Panchami के दिन आठ नागों अनन्त, वासुकी, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीक, कर्कट और शंख की पूजा का भी विधान बताया गया है।
नागपंचमी पर्व के पीछे एक अत्यंत गूढ़ और प्रेरणादायक कथा है, जो महाभारत और पुराणों में वर्णित है। यह कथा राजा जन्मेजय, तक्षक नाग, और आस्तिक मुनि से जुड़ी है। Nag Panchami और राजा जन्मेजय की कथा एक अत्यंत प्रसिद्ध और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण पौराणिक कथा है, जो महाभारत और पुराणों से जुड़ी हुई है। यह कथा न केवल Nag Panchami पर्व की पृष्ठभूमि बताती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे क्षमा, शांति और सद्भावना का मार्ग सबसे श्रेष्ठ होता है।
Naag Panchami और राजा जन्मेजय की पौराणिक कथा:
कथा की कहानी कुछ इस प्रकार है कुरु वंश में एक प्रतापी राजा हुए हैं जिनका नाम जन्मेजय था । जन्मेचय पांडु पुत्र अर्जुन के परपौत्र और परीक्षित के पुत्र थे । जन्मेजय के पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के डसने से हुई थी । तक्षक नाग ने राजा परीक्षित को क्यों डसा था राजा जन्मेजय ने अपने पिता राजा परीक्षित की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए जो किया, वही Nag Panchami पर्व की पृष्ठभूमि बनाता है।
पिता की मृत्यु का कारण:
एक बार राजा परीक्षित जंगल में शिकार के लिए गए थे । शिकार के दौरान राजा बहुत थक गए । राजा को प्यास भी बहुत लगी थी । राजा पानी पीने के लिए जंगल में मौजूद आश्रम में पहुंचे । वहां एक ऋृषि तपस्या कर रहे थे । राजा ने ऋषि से पानी मांगा । लेकिन तपस्या में लीन थे तो उन्होंने राजा की तरफ ध्यान नहीं दिया । एक तो राजा परीक्षित थके हुए थे दूसरे प्यास से उनका बुरा हाल था । ऋषि द्वारा की गई इस अनदेखी से राजा ने खुद को अपमानित महसूस किया । राजा ने एक मरा हुआ साँप ऋषि के गले में डाल दिया।
जब ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि को अपने पिता के अपमान पता चला तो उन्होंने क्रोध में राजा परीक्षित को शाप दिया कि सातवें दिन उन्हें तक्षक नाग उसे डस लेगा और उसकी मृत्यु हो जाएगी । शाप के कारण सातवें दिन तक्षक नाग ने राजा परीक्षित को डंस लिया। राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई ।
सर्प यज्ञ (सर्पसत्र) का आयोजन
पिता की मौत से उनका पुत्र राजा जन्मेजय बहुत दुखी हुआ । उसने पिता की मौत का बदला लेने की ठान ली । राजा जन्मेजय ने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया । इस यज्ञ का नाम था – “सर्पसत्र”, जिसमें ऐसा विधान किया गया था कि “जिसका नाम लिया जाए, जो नाग जाति का हो, वह खुद ही यज्ञ में खिंचा चला आए और यज्ञ की अग्नि में जलकर भस्म हो जाए ।”
यज्ञ शुरू हो गया । एक- एक करके सभी नाग यज्ञ की अग्नि में जलकर भस्म होने लगे । यह देखकर तक्षक इंद्रदेव की शरण में पुहंच गया । लेकिन यज्ञ इतना शक्तिशाली था कि तक्षक नाग, जो इंद्र देव की शरण में गया था, वह भी यज्ञ की अग्नि की और खिंचता चला आ रहा था।
तक्षक नाग को बचाने के लिए नाग माता मनसा देवी ने अपने पुत्र आस्तिक मुनि को राजा जन्मेजय के – “सर्पसत्र”, यज्ञ में भेजा । आस्तिक मुनि बहुत तेजस्वी, विद्वान और तपस्वी बाल ब्राह्मण थे और नाग माता मनसा देवी और ब्राह्मण पिता जरात्कारु के पुत्र थे । माता के आदेश के बाद आस्तिक मुनि यज्ञ में पहुंचे ।
यज्ञ में पहुंचने के बाद बाल मुनि आस्तिक ने राजा जन्मेजय से दान की याचना की । राजा जन्मेजय ने बाल मुनि आस्तिक को कुछ भी दान मांगने को कहा । राजा के ऐसा कहने पर मुनि ने कहा कि हे राजन मैं दान में यह चाहता हूं कि आप इस सर्प यज्ञ को यहीं रोक दें । मुनि की इस मांग ने राजा को धर्मसंकट में डाल दिया। चूंकि राजा ने मुनि आस्तिक को वचन दिया था कुछ भी मांगने का इसलिए राजा जन्मेजय ने यज्ञ को रोक दिया । इसी के साथ तक्षक नाग और अन्य नागों की प्रजाति का विनाश रुक गया।
यज्ञ बंद होने के पश्चात जो नाग अग्नि की ज्वाला में जल रहे थे उन्हें दूध ने नहलाया गया । इससे नागों के शरीर को ठंडक मिली । जिस दिन जिस दिन राजा ने यज्ञ को रोका उस दिन नागपंचमी थी । इस घटना की स्मृति में हर वर्ष श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को “Nag Panchami” का पर्व मनाया जाता है। इस दिन लोग नागों की पूजा करते हैं, दूध अर्पित करते हैं, और नागों को किसी भी प्रकार की क्षति न पहुंचाने का संकल्प लेते हैं।
इस लेख में दी गई जानकारी पौराणिक मान्यताओं, धार्मिक गंथों , पंचांग और ज्योतिष आदि पर आधारित है । इन सभी जानकारियों और तथ्यों की प्रमाणिकता और सटीकता के लिए Bhakti Uday Bharat उत्तरदायी नहीं हैं ।
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