माँ शैलपुत्री, नवरात्रि के पहले दिन पूजा जाने वाली देवी हैं और उन्हें पार्वती माता का पहला स्वरूप माना जाता है। शैलपुत्री का अर्थ है “हिमालय की पुत्री”, जो अपने शांत और दयालु रूप से भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती हैं। उनके मंत्र का जाप करने से न केवल मानसिक और आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि सभी मनोकामनाएँ भी पूर्ण होती हैं।
माँ शैलपुत्री के मंत्र का सही उच्चारण और भक्ति भाव से जाप करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह मंत्र नवरात्रि के पहले दिन विशेष रूप से अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।

मां शैलपुत्री का मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।
मंत्र – ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।
ध्यान मंत्र
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
स्तोत्र पाठ
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
माँ शैलपुत्री मंत्र (Maa shailputri mantra) से जुड़े सवाल (FAQs)
“एक हस्त प्रणामम च हंच पुण्यं प्राकृतम” का क्या अर्थ है
इस श्लोक/वाक्यांश का अर्थ है कि यदि कोई व्यक्ति केवल एक हाथ से भी प्रणाम करता है, तो उसे भी पुण्य की प्राप्ति होती है।
यह दर्शाता है कि देवी-देवताओं के प्रति भक्ति और भाव सबसे महत्वपूर्ण है, न कि केवल कर्मकांड की पूर्णता। सच्चे हृदय से किया गया छोटा-सा प्रणाम भी भक्त को शुभ फल और पुण्य प्रदान करता है।
माँ शैलपुत्री देवी का स्तोत्र क्या है
माँ शैलपुत्री स्तोत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
पूण्र्चन्द्रमुखीं देवीं हेमवर्णां जगत्प्रसूः।
पुण्यां पतिपरीत्राणां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
अर्थ (सरल व्याख्या)
इस स्तोत्र में माँ शैलपुत्री की वंदना की गई है। वे चन्द्रमा से सुशोभित मस्तक वाली, वृषभ पर आरूढ़ और त्रिशूल धारण करने वाली हैं। वे सम्पूर्ण जगत की जननी, पवित्र और अपने भक्तों की रक्षा करने वाली देवी हैं।
माँ शैलपुत्री की पूजा कैसे करें
माँ शैलपुत्री नवरात्रि के पहले दिन पूजित होती हैं। उनकी पूजा करने से साधक को शक्ति, स्थिरता और शुभ फल की प्राप्ति होती है।
पूजा विधि:
प्रातः स्नान एवं शुद्धि – सबसे पहले घर और पूजा स्थल की सफाई करें, फिर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
कलश स्थापना – शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित करें और उस पर नारियल, आम के पत्ते व जल रखें।
माँ शैलपुत्री का ध्यान – माँ की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएँ और गंगाजल छिड़क कर स्थान शुद्ध करें।
आसन एवं आवाहन – माँ शैलपुत्री का आवाहन मंत्र बोलकर उन्हें आसन दें।
पुष्प अर्पण – सफेद फूल, अक्षत, रोली, सिंदूर और चंदन अर्पित करें।
भोग – दूध से बनी मिठाई, घी और फल अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
मंत्र जप –
“ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥”
इस मंत्र का जाप 108 बार करें।
आरती – अंत में माँ शैलपुत्री की आरती करें और परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करें।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री को क्या भोग लगाना चाहिए
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री को घी और सफेद रंग के व्यंजन का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
विशेष रूप से –
शुद्ध घी (दीपक में भी और भोग में भी)
दूध से बनी मिठाई जैसे खीर या रसगुल्ला
सफेद फल जैसे केला, नारियल या चावल की खीर
मान्यता है कि माँ शैलपुत्री को घी अर्पित करने से भक्त का स्वास्थ्य उत्तम रहता है और जीवन में दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
पहले नवरात्रि में मां शैलपुत्री की कथा क्या है
पहले नवरात्रि की माँ शैलपुत्री की कथा
माँ शैलपुत्री नवरात्रि की प्रथम देवी हैं। वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण शैलपुत्री कहलाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वे पूर्व जन्म में सती थीं, जिन्होंने अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन न कर पिता दक्ष के यज्ञकुंड में स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया था। अगले जन्म में वे हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में अवतरित हुईं और पुनः भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त किया।
माँ शैलपुत्री वृषभ (बैल) पर सवार रहती हैं, उनके दाएँ हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल पुष्प सुशोभित रहता है। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र की शोभा है।
महत्व
पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा करने से भक्त के जीवन में स्थिरता, आत्मबल और धैर्य का संचार होता है। नवरात्रि की शुरुआत इन्हीं की पूजा से होती है, जो साधक को शक्ति और सफलता की ओर अग्रसर करती है।
माँ शैलपुत्री मंत्र (Maa shailputri mantra) के ब्लॉग का निष्कर्ष
माँ शैलपुत्री नवरात्रि की प्रथम शक्ति स्वरूपा हैं, जिनकी पूजा से साधक के जीवन में नई ऊर्जा, आत्मविश्वास और स्थिरता आती है। उनके मंत्र, स्तोत्र और पूजा-विधि का पालन कर भक्त अपने जीवन से नकारात्मकता दूर कर दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करता है। घी और सफेद भोग अर्पित करने से स्वास्थ्य उत्तम रहता है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा करना साधना का प्रारंभिक और सबसे महत्वपूर्ण चरण माना गया है। सच्चे मन और भक्ति भाव से उनका ध्यान करने पर माँ शीघ्र प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को मनोकामनाओं की सिद्धि प्रदान करती हैं।