श्री खाटू श्याम बाबा की कथा प्रारंभ
बहुत समय पहले, महाभारत काल में, भीम के पौत्र बर्बरीक का जन्म हुआ। बचपन से ही वे अद्भुत बल, वीरता और धर्मपरायणता में अग्रणी थे। बर्बरीक का मन केवल धर्म और न्याय के लिए धड़कता था।
वे महीसागर संगम के एक गुप्त स्थान पर तपस्या करने लगे। वहाँ उन्होंने सात्विक और निष्काम तपस्या की। उनकी तपस्या से उन्हें तीन विशेष तीर और धनुष प्राप्त हुए। बर्बरीक ने संकल्प लिया कि वे युद्ध में हमेशा हारने वालों की मदद करेंगे, चाहे कोई भी परिस्थिति हो।

कुरुक्षेत्र युद्ध और श्री कृष्ण से भेंट
समय आया जब कुरुक्षेत्र में पांडव और कौरव की सेनाएँ युद्ध के लिए एकत्र हुईं। बर्बरीक भी युद्ध में हिस्सा लेने के लिए प्रस्थान करने लगे।
तभी भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और बर्बरीक को रोक लिया। कृष्ण ने पूछा, “तुम युद्ध में क्यों जा रहे हो?”
बर्बरीक ने उत्तर दिया, “मैं हर हारने वाले की सहायता करने आया हूँ।”
कृष्ण ने उनका परिक्षण लिया। बर्बरीक ने अपने तीन तीरों से सभी पेड़ों के पत्ते भेद दिए, सिवाय एक पत्ते के, जो कृष्ण ने अपने पैरों के नीचे दबा रखा था।
तब कृष्ण ने उनसे कहा, “मैं तुमसे एक वरदान चाहता हूँ।”
बर्बरीक ने कहा, “जो चाहो मांगो, मैं पूरा करूँगा।”
कृष्ण ने माँगा शीश दान, और बर्बरीक ने अपने शीश को श्री कृष्ण को भेंट कर दिया।
भगवान ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में वे ‘श्याम’ नाम से पूजनीय होंगे, और उनके मस्तक की पूजा हमेशा की जाएगी।
ऐसी ही आस्था और भक्ति का अनुभव आप गोवर्धन परिक्रमा (govardhan parikrama) – आस्था, नियम और महत्वमें भी कर सकते हैं।
खाटू में प्रकट होना
कई वर्षों बाद, भगवान श्यामदेव खाटू में चमत्कारी रूप से प्रकट हुए।
एक दिन, ग्वाले ने देखा कि एक गाय रास्ते में खड़ी होकर चारों थनों से दूध बहा रही थी।
ग्वाले ने यह घटना राजा भक्त नरेश को बताई। राजा ने स्वप्न में देखा कि भगवान श्यामदेव ने कहा,
“जहाँ गाय के थनों से दूध बह रहा है, वहाँ मेरा शिलारूप विग्रह स्थापित करो। जो भक्त यहाँ आकर मेरी पूजा करेंगे, उनका कल्याण होगा।”
इसके बाद खाटू श्याम मंदिर का निर्माण हुआ। चौहान राजपूतों ने इसे संरक्षित किया। औरंगजेब के शासनकाल में पुराने मंदिर का विध्वंस हुआ, लेकिन विग्रह सुरक्षित रहा। आज यह मंदिर देश–विदेश से लाखों भक्तों के लिए पूजनीय स्थल है।
भक्ति और पूजा की विधि
भक्त इस प्रकार खाटू श्याम बाबा की पूजा कर सकते हैं:
- सुबह स्नान कर साफ कपड़े पहनें।
- मंदिर में पुष्प, दीप और घी अर्पित करें।
- श्याम भजन और कीर्तन करें।
- शनिवार या किसी विशेष व्रत दिन पर पूजा करें।
- शिला विग्रह के सामने ध्यान और प्रार्थना करें।
भक्तों का विश्वास है कि इन विधियों से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख–शांति आती है।
पूजा के समय आप ॐ जय जगदीश हरे (om jai jagdish hare) आरतीका गायन कर सकते हैं, जिससे वातावरण और भी पवित्र हो जाता है।
मन्नत पूरी होने की अद्भुत घटना
“कभी-कभी भगवान की कृपा अचानक ही दिख जाती है। एक छोटा सा बच्चा अपनी मन्नत लेकर खाटू श्याम मंदिर गया। उसने धीरे-धीरे शिला विग्रह के सामने अपनी मनोकामना व्यक्त की। उसकी आँखों में श्रद्धा और विश्वास था। तभी एक चमत्कारी दृश्य हुआ—गाय के थनों से दूध बहने लगा। इस अद्भुत घटना को देख बच्चा समझ गया कि यही है असली शक्ति और आशीर्वाद। यही सीख देती है खाटू श्याम बाबा की कथा।”
बाबा श्याम जी से अर्जी कैसे लगाई जाती है: कागज़ पर अपनी मनोकामना लिखकर मंदिर में अर्पित करें।
खाटू श्याम को अर्जी कैसे लिखें: नाम, जन्म तिथि और मनोकामना स्पष्ट लिखें।
खाटू श्याम जी का मंत्र: “ॐ श्यामाय नमः”।
घर में खाटू श्याम की मूर्ति रखने से क्या होता है: घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
पहली बार खाटू श्याम जाए तो क्या करें: श्रद्धा के साथ दर्शन, भजन, और अर्जी अर्पित करें।
इसी तरह व्रत और संकल्प की महिमा के लिए बृहस्पतिवार व्रत कथा(brihaspativar vrat katha) पढ़ना भी लाभकारी है।
पहली बार खाटू श्याम धाम जाने का अनुभव
“जब आप पहली बार खाटू श्याम धाम जाते हैं, तो महसूस करेंगे कि यह जगह सिर्फ मंदिर नहीं, बल्कि आस्था का प्रतीक है। आप शिला विग्रह के सामने खड़े होते हैं और अपने दिल की पूरी मन्नत अर्पित करते हैं। आपकी आँखों के सामने वही चमत्कार घटता है जिसे कई भक्तों ने अनुभव किया—यह सब आपको सीखा देता है कि विश्वास और भक्ति से सब संभव है।
श्री खाटू श्याम बाबा की कथा का सार
- बर्बरीक ने धर्म और न्याय की रक्षा के लिए अपनी शक्ति और तपस्या का प्रयोग किया।
- उन्होंने निष्काम भक्ति का उदाहरण दिया।
- शीश दान और खाटू में प्रकट होने की घटना भक्तों के लिए आध्यात्मिक संदेश और आशीर्वाद है।
जय श्री श्याम