Kashi Vishwanath Jyotirlinga: शिव की नगरी का आध्यात्मिक रहस्य

काशी में क्यों रहते हैं स्वयं शिव? जानिए ज्योतिर्लिंग के पीछे की अद्भुत कथा
भगवान भोलेनाथ के 12 ज्योतिर्लिंगों एक ज्योतिर्लिंग काशी में स्थित है । काशी उत्तर प्रदेश (यूपी ) में आता है । वर्तमान में इसे वाणारसी और बनारस के नाम से जाना जाता है । काशी को भगवान शिव की नगरी कहते हैं । पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर देवों के देव महादेव काशी में ज्योति स्वरूप में विराजमान है । भगवान भोलेनाथ के इस निवास स्थान को मोक्ष नगरी, शिव नगरी” और “ज्ञान नगरी” के नाम से जाना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग को काशी विश्वनाथ बाबा के नाम से जाना जाता है बाबा विश्वनाथ या बाबा विश्वेश्वर कहा जाता है। मान्यता है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिका हुआ है। काशी पुरातन समय से ही अध्यात्म का केंद्र रहा है। Kashi Vishwanath Jyotirlinga की स्थापना की कहानी, महातम क्या है और क्या विशेषता है इसके बारे में विस्तार से जानते हैं
काशी का धार्मिक महत्त्व और विशेषता
काशी को स्वयं भगवान शिव ने अपनी नगरी कहा है।
स्कंद पुराण में कहा गया है: “काश्यां हि काशते काशी, काशी विश्वस्य भासकः।”
अर्थ: काशी वह नगरी है जो पूरे संसार को प्रकाश प्रदान करती है।
यह एकमात्र ऐसी नगरी मानी जाती है जिसे त्रिलोकनाथ शिव ने खुद बसाया और कहा कि जब प्रलय में सब कुछ नष्ट हो जाएगा, तब भी काशी बनी रहेगी।
Kashi Vishwanath Jyotirlinga में एक विशेषता यह है कि यहां शिव और शक्ति दोनों के एक साथ दर्शन अत्यंत दुर्लभ और दिव्य अनुभव माना जाता है । क्योंकि Kashi Vishwanath Jyotirlinga के दो हिस्से हैं। एक ओर भगवान शिव तो दूसरी ओर देवी शक्ति का वास है।
Kashi Vishwanath Jyotirlinga की स्थापना कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। दोनों ही अपने-अपने को सर्वोच्च बताने लगे। तब एक अनंत ज्योति स्तंभ (प्रकाश का स्तंभ) प्रकट हुआ, और एक आकाशवाणी हुई कि जो भी इस स्तंभ का आदि या अंत खोज लेगा, वही श्रेष्ठ माना जाएगा।
भगवान विष्णु नीचे की ओर पाताल में गए और ब्रह्मा ऊपर की ओर चले। विष्णु ने स्वीकार किया कि वह अंत नहीं पा सके। लेकिन ब्रह्मा ने झूठ बोल दिया कि उन्होंने स्तंभ का आदि खोज लिया है। इस पर भगवान शिव उस ज्योति स्तंभ से प्रकट हुए और ब्रह्मा को झूठ बोलने पर शाप दिया कि उनकी पूजा कभी नहीं होगी, जबकि विष्णु को सत्य बोलने के लिए आशीर्वाद मिला।
उस ज्योति स्तंभ को ही ज्योतिर्लिंग कहा गया और काशी में शिव ने उसी ज्योति रूप में निवास किया – जो आज Kashi Vishwanath Jyotirlinga के रूप में पूजित है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास और वास्तुकला
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की वास्तुकला न केवल भव्य है, बल्कि आत्मिक शांति और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक भी है। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य कला की श्रेष्ठता को दर्शाता है और शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद्र है।
मंदिर का मुख्य शिखर सोने से मढ़ा हुआ है, जो दूर से ही अपनी दिव्य आभा बिखेरता है। यह सोने का गुंबद सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह द्वारा दान स्वरूप भेंट किया गया था। यह न केवल मंदिर की सुंदरता को बढ़ाता है, बल्कि उसकी गरिमा को भी दर्शाता है।
मंदिर का गर्भगृह अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली माना जाता है। यहां भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। गर्भगृह की बनावट सादगीपूर्ण है, परंतु वहां की आध्यात्मिक ऊर्जा अत्यंत प्रभावशाली होती है। यहाँ दिन-रात भक्तों की लंबी कतारें रहती हैं, जो जलाभिषेक व रुद्राभिषेक के माध्यम से भगवान शिव की पूजा करते हैं।
पूरे मंदिर क्षेत्र में तीर्थयात्रियों की चहल-पहल और श्रद्धा की गूंज सुनाई देती है। यह स्थान केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि एक धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर है, जो अनादि काल से भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता आ रहा है।
Kashi Vishwanath Jyotirlinga की विशेषताएँ
- मोक्ष नगरी: मान्यता है कि जो व्यक्ति काशी में देह त्याग करता है, उसे सीधे मोक्ष प्राप्त होता है। यहां भगवान शिव स्वयं मृतकों के कान में “राम” नाम का उच्चारण करते हैं।
- गंगा और शिव का संगम: यह मंदिर गंगा नदी के किनारे स्थित है। पवित्र गंगा में स्नान कर काशी विश्वनाथ के दर्शन करना पुण्य और मोक्षदायक माना गया है।
- ज्ञान की नगरी: काशी केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैदिक विद्या, ज्योतिष और संस्कृत के लिए भी प्रसिद्ध रही है।
- अन्य देवी-देवताओं की उपस्थिति: मंदिर परिसर में कई छोटे मंदिर भी हैं – माँ अन्नपूर्णा, कालभैरव, गणेशजी और विष्णु जी आदि के मंदिर भी पास ही स्थित हैं।
काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर
2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का उद्घाटन किया। इस परियोजना के अंतर्गत: मंदिर का सीधा संपर्क गंगा घाट से स्थापित हुआ। श्रद्धालुओं के लिए भव्य मार्ग, विश्राम स्थल, संग्रहालय, सुविधा केंद्र आदि बनाए गए। कॉरिडोर के जरिए काशी की प्राचीन संस्कृति और आधुनिक विकास का सुंदर संगम हुआ।
काशी विश्वनाथ में दर्शन का महत्व
एक बार काशी विश्वनाथ का दर्शन करने से ही जीवन के पाप नष्ट हो जाते हैं। विशेषकर सावन, महाशिवरात्रि, श्रावण सोमवार, और प्रदोष के दिन लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
निष्कर्ष
Kashi Vishwanath Jyotirlinga केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि यह श्रद्धा, शाश्वतता और शिव तत्व का प्रतीक है। यह स्थान हर शिवभक्त के जीवन में एक बार अवश्य आने योग्य है। यहां की हर गली, हर द्वार, हर घंटा और हर दीपक में शिव का वास है।
“काशी के कंकर भी शंकर हैं” – यह कहावत शिव की इस दिव्य नगरी का सार है।
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