Kaliya naag मर्दन: श्रीकृष्ण की अद्भुत बाल लीला

Kaliya naag कथा का पृष्ठभूमि
यह कथा भगवान श्रीकृष्ण के बाल्यकाल की है । श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था लेकिन उनका लालन पालन वृंदावन में हो रहा था । वृंदावन के पास बहने वाली यमुना नदी वृंदावनवासियों के लिए जीवनदायिनी थी । उस समय यमुना नदी का एक भाग का पानी बहुत ही जहरीला था । जिसे कालिया गांव वालों के जीवन का मुख्य जल-स्रोत थी। लेकिन उस समय यमुना का एक भाग, जिसे कालिया दह या कालिया घाट कहा जाता था, अत्यंत विषैला हो चुका था। इसका कारण था कालिया नाग, जो यमुना के उसी भाग में निवास करता था।
भगवान श्रीकृष्ण को लीलाधर कहा जाता है, और उनकी बाल लीलाएं तो विशेष रूप से मनमोहक और अद्भुत हैं। ऐसी ही एक प्रमुख और रोमांचक लीला है Kaliya naag मर्दन, आइए जानते हैं इस कथा का विवरण और वह कारण, जिसके चलते भगवान ने Kaliya naag को श्राप दिया।
दर्शन मात्र से कालसर्प दोष से मुक्ति
ब्रज, गोकुल और वृंदावन की पावन धरती श्रीकृष्ण की अनगिनत लीलाओं की साक्षी रही है। इन्हीं में से एक है कालिया नाग मर्दन लीला, जिसका प्रमाण आज भी ब्रज क्षेत्र के जैंत गांव में मिलता है । मान्यता है कि भगवान के श्राप के बाद कालिया नाग पत्थर के रूप में यहीं स्थापित हो गया। श्रद्धालु विश्वास करते हैं कि यहां दर्शन मात्र से कालसर्प दोष से मुक्ति प्राप्त होती है।
Kaliya naag का कहर
भागवत कथा के अनुसार, कालिय नामक पांच फणों वाला एक विषधर नाग, गरुड़ पक्षी (भगवान विष्णु के वाहन) से शत्रुता के कारण गोकुल के पास बहने वाली यमुना नदी में आकर बस गया। उसके विष के कारण यमुना नदी का पानी जहरीला हो गया । जहरीले पानी की वजह से पशु पक्षी और इंसानों की जान जाने लगी । सभी लोगों ने नदी के पास जाना बंद कर दिया और अपने बच्चों को भी नदी के पास जाने से रोक दिया ।
गेंद लेने के बहाने यमुना में प्रवेश
एक दिन श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ यमुना नदी तट पर गेंद खेल रहे थे। खेलते-खेलते गेंद यमुना नदी में जा गिरी। नदी से गेंद निकालने के लिए कोई भी बच्चा तैयार नहीं हुआ । यहां तक कि बलराम भी नहीं गया । इसके बाद श्रीकृष्ण स्वयं गेंद लाने के लिए यमुना में उतर गए।
Kaliya naag से संघर्ष
श्रीकृष्ण के नदी में उतरते ही Kaliya naag गुस्से में आ गया । कालिय ने श्रीकृष्ण को डसने का प्रयास किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने कालिय के हर हमले को नाकाम कर दिया। फिर श्रीकृष्ण ने Kaliya naag पर मुक्कों से प्रहार करना शुरू कर दिया। जिसके कारण Kaliya naag बेदम हो गया। श्रीकृष्ण के नदी में उतरने की खबर पूरे गोकुल में फैल गई । सभी लोगों को कृष्ण की चिंता सता रही थी क्यों कि सभी जानते थे कि वहां Kaliya naag रहता था । नंद बाबा, यशोदा मैया सहित गांववासी यमुना किनारे पहुंच गए।
कालिय को किया माफ
Kaliya naag को थकाकर श्रीकृष्ण ने उसके पांचों फणों को दबा दिया और उस पर खड़े होकर बांसुरी बजाते हुए नृत्य करने लगे। जब कालिया पूरी तरह थक कर निढाल हो गया, तभी उसकी पत्नियाँ—नागपत्नियाँ—कृष्ण के चरणों में आकर प्रार्थना करने लगीं। उन्होंने कहा, “हे प्रभु, हमारा पति अज्ञानवश यहां आया था। यह अहंकारी अवश्य है, परंतु आपकी लीला को देखकर अब इसका हृदय परिवर्तन हो गया है। इसे क्षमा कर दें।”
कृष्ण का आशीर्वाद और कालिया का प्रस्थान
भगवान श्रीकृष्ण ने Kaliya naag की पत्नियों की याचना स्वीकार कर ली और कालिय को जीवनदान दे दिया । लेकिन एक शर्त भी रख दी तुरंत यमुना को छोड़कर समुद्र में अपने वास्तविक निवास पर लौट जाए। उन्होंने यह भी आशीर्वाद दिया कि गरुड़ अब उसे नहीं सताएगा, क्योंकि उसके फणों पर कृष्ण के चरणचिन्ह होंगे, जिन्हें देखकर गरुड़ उसे छोड़ देगा। कालिया ने श्रीकृष्ण के आदेश का पालन किया और अपने परिवार सहित वहां से चला गया।
यमुना का शुद्ध होना और वृंदावन में उत्सव
कालिया के जाने के बाद यमुना का जल शुद्ध और स्वच्छ हो गया। वृंदावन में आनंद और उत्सव का माहौल छा गया, क्योंकि यह सिर्फ एक नाग पर विजय नहीं थी, बल्कि पूरे गांव के जीवन और विश्वास की रक्षा थी।
Kaliya naag को लेकर एक अन्य कथा यह भी है कि
श्रीकृष्ण ने कालिय को यमुना छोड़ने का आदेश दिया, लेकिन वे जानते थे कि इतना विषैला नाग जहां भी जाएगा, वहां प्राणियों के लिए संकट बनेगा। इसलिए उन्होंने उसे श्राप दिया— “हे कालिय! भागते समय जहां भी पीछे मुड़कर देखोगे, वहीं पत्थर के हो जाओगे।” वृंदावन से लगभग 5 किलोमीटर दूर जैंत गांव में Kaliya naag ने पीछे मुड़कर देखा और पत्थर का हो गया। आज भी यहां उसका मंदिर है, जहां श्रद्धालु दर्शन और पूजा करते हैं।
ब्रिटिश शासन का प्रसंग
ब्रिटिश काल में यह पत्थर रूपी Kaliya naag जमीन में धंस गया था। अंग्रेज अधिकारी इसे ब्रिटेन भेजना चाहते थे, लेकिन ग्रामीणों ने उसे गुप्त रूप से निकालकर छिपा दिया। अंग्रेजों की खोज के बावजूद पत्थर नहीं मिला। स्वतंत्रता के बाद ग्रामीणों ने पुनः उसी स्थान पर इसे स्थापित किया और बाद में मंदिर का निर्माण कराया।