देव दीपावली (dev deepawali), जिसे देवताओं की दिवाली भी कहा जाता है, कार्तिक पूर्णिमा के दिन वाराणसी में मनाया जाता है। यह वह क्षण है जब पूरा बनारस लाखों दीपों की ज्योति से जगमगा उठता है और गंगा माता के तट पर दिव्यता का साक्षात्कार होता है।

देव दीपावली (dev deepawali) का इतिहास और महत्व
देव दीपावली (dev deepawali) की शुरुआत पंचगंगा घाट पर 1915 में हजारों दीप जलाकर हुई थी। यह वही दिन है जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर देवताओं को मुक्त किया था। इसीलिए इस तिथि को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन देवता स्वयं काशी में उतरकर दीप जलाते हैं।
काशी की परंपरा, संस्कृति और अध्यात्म का यह संगम दुनिया भर से लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। गंगा के घाटों से लेकर मंदिरों और मठों तक हर कोना दीपों से जगमगाता है।
वाराणसी की ठंडी रात में जब रविदास घाट पर पहला दीप जलाया गया, तभी बूढ़े संत ने मुस्कुराते हुए कहा — “अब देवता उतर आए हैं।” उस प्रकाश में उसकी आँखों की नमी चमक उठी, जैसे भीतर का अंधकार मिट गया हो। यही है देव दीपावली (dev deepawali) — बाहर नहीं, भीतर के प्रकाश का उत्सव।
काशी में देव दीपावली (dev deepawali) का भव्य आयोजन
हर साल रविदास घाट से राजघाट तक के घाटों पर लाखों दीप जलाए जाते हैं। गंगा आरती, दीपदान, और महा आरती जैसे आयोजनों से यह पर्व भव्य बनता है। यह वही भूमि है जहाँ गंगा माता की आरती के दर्शन करना हर भक्त का सौभाग्य माना जाता है।
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पौराणिक कथा: जब शिव बने त्रिपुरारी
पुराणों के अनुसार, तीन राक्षस — तारकासुर, विधुनमाली और त्रिपुरासुर — ने तीन नगरों (स्वर्ण, रजत और लौह) से देवताओं को परेशान किया। देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की, जिन्होंने कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपने दिव्य बाण से उन तीनों नगरों का नाश किया और त्रिपुरारी कहलाए। देवताओं ने इसी दिन दीप जलाकर अपनी विजय का उत्सव मनाया — यही देव दीपावली (dev deepawali) का प्रारंभ माना जाता है।
देव दीपावली (dev deepawali) में घाटों की झिलमिलाती रात
इस दिन काशी के सभी घाट जैसे — दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, पंचगंगा घाट, और केदार घाट दीपों से सुसज्जित रहते हैं। गंगा तट पर लाखों दीपों की श्रृंखला ऐसी प्रतीत होती है मानो धरती पर आकाश उतर आया हो। सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य, संगीत, और गंगा आरती इस उत्सव को अविस्मरणीय बनाते हैं।
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जब तुम दशाश्वमेध घाट पर खड़े होकर लाखों दीपों को गंगा की लहरों पर तैरते देखते हो, एक अनजाना सुकून महसूस करते हो। वैदिक मंत्रों की गूंज, जलती आरती और हवा में घुली चंदन की महक — सब तुम्हें याद दिलाते हैं कि देव दीपावली (dev deepawali) सिर्फ़ एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा से मिलने का क्षण है।
देव दीपावली (dev deepawali) की धार्मिक मान्यताएँ
- कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान और दीपदान से पापों का नाश होता है।
- यह दिन पूर्वजों को स्मरण और देवताओं का स्वागत करने का प्रतीक है।
- भक्त मानते हैं कि इस दिन दीपदान करने से जीवन में प्रकाश और समृद्धि आती है।
काशी की संस्कृति और गंगा सेवा निधि की भूमिका
गंगा सेवा निधि हर साल दशाश्वमेध घाट पर अमर जवान ज्योति को समर्पित पुष्पांजलि अर्पित करती है। यह समारोह न केवल भक्ति का प्रतीक है बल्कि देशभक्ति और संस्कृति का भी उत्सव है। सरकार और प्रशासन की व्यवस्था से लाखों श्रद्धालु सुरक्षित रूप से इस आयोजन का हिस्सा बनते हैं।
देव दीपावली (dev deepawali) का आध्यात्मिक संदेश
देव दीपावली (dev deepawali) केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि आंतरिक प्रकाश का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि जैसे भगवान शिव ने अंधकार और अहंकार का नाश किया, वैसे ही हमें अपने भीतर के राक्षसों — क्रोध, लोभ, वासना — को मिटाकर प्रकाश का मार्ग अपनाना चाहिए।
देव दीपावली (dev deepawali) और भारतीय परंपरा का आधुनिक रूप
आज देव दीपावली (dev deepawali) केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि एक वैश्विक आकर्षण बन चुका है। हर साल विदेशी पर्यटक भी काशी की इस दिव्यता को देखने आते हैं। यह परंपरा भारत की आध्यात्मिक पहचान और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है।
देव दीपावली (dev deepawali) से जुड़े सवाल (FAQs)
देव दीपावली (dev deepawali) क्या है?
देव दीपावली (dev deepawali) या देवताओं की दिवाली एक पवित्र हिंदू पर्व है, जो कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन माना जाता है कि देवता स्वयं पृथ्वी पर उतरकर गंगा माता की आराधना करते हैं। यह पर्व दीपावली के 15 दिन बाद वाराणसी में बड़े भव्य रूप में मनाया जाता है।
देव दीपावली (dev deepawali) 2025 में कब मनाई जाएगी?
देव दीपावली (dev deepawali) 2025 का पर्व इस वर्ष 5 नवंबर, बुधवार को मनाया जाएगा। कार्तिक पूर्णिमा की तिथि 4 नवंबर की रात 10:36 बजे से शुरू होकर 5 नवंबर शाम 6:48 बजे तक रहेगी। इस दिन गंगा स्नान और दीपदान का विशेष महत्व है।
देव दीपावली (dev deepawali) क्यों मनाई जाती है?
यह पर्व उस दिन की स्मृति में मनाया जाता है जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर देवताओं को मुक्त किया था। देवताओं ने इस अवसर पर दीप जलाकर दिवाली मनाई थी, इसलिए इसे देव दीपावली (dev deepawali) कहा जाता है।
देव दीपावली (dev deepawali) और दीपावली में क्या अंतर है?
दीपावली वह पर्व है जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, जबकि देव दीपावली (dev deepawali) वह दिन है जब *देवताओं ने भगवान शिव की विजय का उत्सव मनाया था। दीपावली पूरे भारत में मनाई जाती है, जबकि देव दीपावली (dev deepawali) विशेष रूप से वाराणसी में प्रसिद्ध है।
देव दीपावली (dev deepawali) के दिन क्या करना चाहिए?
इस दिन सूर्योदय से पहले गंगा स्नान, दीपदान, और गंगा आरती करना शुभ माना जाता है। कई लोग अपने घरों में भी दीप जलाकर भगवान शिव और गंगा माता की पूजा करते हैं। काशी के घाटों पर दीपदान का दृश्य अत्यंत दिव्य माना जाता है।
देव दीपावली (dev deepawali) के ब्लॉग का निष्कर्ष
देव दीपावली (dev deepawali) वह क्षण है जब बनारस सचमुच “आस्था की राजधानी” बन जाता है। गंगा की लहरों पर तैरते दीपक और वातावरण में गूंजते वैदिक मंत्र मानवता को एक ही संदेश देते हैं — “जहाँ प्रकाश है, वहीं भगवान हैं।”
