Bhaum Pradosh Vrat Katha: भौम प्रदोष व्रत कथा

Bhaum Pradosh Vrat

Bhaum Pradosh Vrat Katha: भौम प्रदोष व्रत कथा, महत्व, पूजन-विधि और संपूर्ण जानकारी

हिंदू धर्म में त्रयोदशी तिथि को आने वाला प्रदोष व्रत अत्यंत शुभ माना गया है। जब यह तिथि मंगलवार के दिन पड़ती है, तब यह व्रत भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat) कहलाता है। ‘भौम’ शब्द मंगल ग्रह से संबंधित है, इसलिए इस दिन मंगल देव के साथ-साथ भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। यह व्रत संकट नाश, ऋण मुक्ति और ग्रह दोष शांति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।

भौम प्रदोष वह व्रत है, जिसमें शिव और मंगल दोनों का संयुक्त आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह व्रत भाव, विश्वास, संयम और आत्मिक शक्ति को बढ़ाने वाला है। इस लेख में हम Bhaum Pradosh Vrat Katha, महत्व, व्रत-विधि, अभिषेक नियम, सावधानियाँ और आध्यात्मिक लाभों की विस्तृत जानकारी जानेंगे।

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भौम प्रदोष व्रत क्या है?

मंगलवार को आने वाली त्रयोदशी तिथि को भौम प्रदोष कहा गया है। प्रदोषकाल वह समय है जब सूर्यास्त के बाद लगभग डेढ़ घंटे तक शिवजी अत्यंत प्रसन्न अवस्था में माने जाते हैं। इस स्थिति में पूजा करने से मनोकामनाएँ शीघ्र पूर्ण होती हैं।

मंगल ग्रह को साहस, ऊर्जा, भूमि, कर्ज, रक्त, धैर्य और संघर्ष का प्रतीक माना जाता है। जब मंगल का दिन और प्रदोष का शुभ योग मिलता है, तब इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। यही कारण है कि यह व्रत भूमि विवाद समाधान, आर्थिक समस्याओं से मुक्ति, विवाह में विलंब, शत्रु भय, स्वास्थ्य समस्या और मंगल दोष से छुटकारा दिलाने वाला माना गया है।

Bhaum Pradosh Vrat Katha (भौम प्रदोष व्रत कथा)

प्राचीन काल में एक गरीब ब्राह्मण अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अत्यंत कठिन परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहा था। कर्ज बढ़ चुका था, भोजन भी मुश्किल से मिलता था और जीवन में दुख ही दुख थे। एक दिन दुखी होकर वह अपने परिवार सहित नगर छोड़कर किसी शांत स्थान की ओर चल पड़ा।

रास्ते में उसे एक दयालु साधु मिला जिसने उसकी पीड़ा सुनकर कहा—

“हे पुत्र! यदि तुम अपने जीवन से सारे कष्ट हटाना चाहते हो, तो मंगलवार को आने वाली प्रदोष तिथि का व्रत करना शुरू करो। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से जीवन बदल जाता है और मंगलदेव भी प्रसन्न होकर बाधाएँ दूर करते हैं।”

ब्राह्मण ने साधु की बात मानकर उसी दिन से व्रत आरंभ कर दिया। उसने श्रद्धा और पूर्ण निष्ठा के साथ भौम प्रदोष का पालन किया।

कुछ ही दिनों बाद एक रात उसे स्वप्न में भगवान शिव का साक्षात दर्शन हुआ। शिवजी ने कहा—

“तुम्हारे दुख समाप्त होंगे। भौम प्रदोष व्रत करने से पापों का नाश होता है और मंगलदेव का क्रोध शांत हो जाता है।”

अगली सुबह नगर के कुछ लोग उसके घर पहुँचे और उसके सभी ऋण माफ कर दिए। उसी दिन राजा के महल से उसे नौकरी का संदेश भी मिला। धीरे-धीरे उसके जीवन में सुख, संपत्ति और समृद्धि का आगमन हुआ।

इस कथा से यह संदेश मिलता है कि भक्ति, धैर्य और विश्वास के साथ भौम प्रदोष व्रत करने पर जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और भगवान शिव अपनी कृपा बरसाते हैं।

भौम प्रदोष व्रत का महत्व

Bhaum Pradosh Vrat अनेक आध्यात्मिक और ग्रह संबंधी कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका प्रभाव केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि मानसिक, शारीरिक और वैदिक रूप से भी गहरा है।

1. मंगल दोष शांति

यह व्रत कुंडली में मौजूद मंगल दोष को शांत करता है और जीवन में संतुलन लाता है।

2. साहस और ऊर्जा में वृद्धि

मंगल ग्रह शक्ति और वीरता का प्रतीक है। यह व्रत मानसिक दृढ़ता और आत्मविश्वास बढ़ाता है।

3. आर्थिक समस्या से मुक्ति

पुराने कर्ज, लोन और आर्थिक तनाव से छुटकारा मिलता है।

4. भूमि एवं कोर्ट-कचहरी मामलों में सफलता

मंगल का भूमि से गहरा संबंध है—इस व्रत से भूमि विवादों का समाधान होता है।

5. स्वास्थ्य सुधार

रक्त, हड्डी और ऊर्जा से जुड़े रोगों में भी यह व्रत लाभ देता है।

6. पापों का क्षय

शिवजी का प्रदोषकाल पापों के नाश करने वाला माना गया है।

भौम प्रदोष व्रत की पूजा-विधि

1. प्रातः स्नान और संकल्प

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें—
“मैं आज भौम प्रदोष व्रत रखता/रखती हूँ, कृपया भगवान शिव मेरी मनोकामनाएँ पूर्ण करें।”

2. दिनभर व्रत रखना

भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं। फलाहार या निर्जल उपवास अपनी क्षमता के अनुसार कर सकते हैं।

3. प्रदोषकाल में शिव पूजा

सूर्यास्त के बाद लगभग 1.5 घंटे प्रदोषकाल होता है। यही पूजा का श्रेष्ठ समय है।

4. शिवलिंग अभिषेक

अभिषेक की सामग्री:

  • गंगाजल
  • दूध
  • दही
  • शहद
  • घी
  • चंदन
  • बेलपत्र
  • धतूरा
  • सफेद अक्षत

5. दीपदान

शिव मंदिर में एक दीया अवश्य जलाएँ।

6. मंगल देव की पूजा

लाल पुष्प, मसूर दाल, गुड़ और लाल वस्त्र मंगलदेव को अर्पित किए जाते हैं।

7. व्रत कथा का पाठ.

Bhaum Pradosh Vrat Katha सुनना इस व्रत की पूर्णता का मुख्य भाग है।

8. आरती और प्रसाद

शिवजी की आरती करें तथा प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत समाप्त करें।

भौम प्रदोष व्रत के नियम

  • ✔ सात्त्विक आहार
  • ✔ मन में पवित्र भाव
  • ✔ ब्रह्मचर्य का पालन
  • ✔ क्रोध, झूठ और वचनबद्धता से बचना
  • ✔ हिंसा या नकारात्मक विचार से दूर रहना

इन नियमों का पालन करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है।

भौम प्रदोष व्रत से मिलने वाले लाभ

1. जीवन के कष्ट समाप्त होते हैं

यह व्रत कठिन परिस्थितियों को सरल बनाता है।

2. शत्रुओं का नाश

मंगल साहस और शक्ति का ग्रह है, जिससे शत्रुओं का भय समाप्त होता है।

3. विवाह में आ रही बाधाएँ दूर होती हैं

विशेष रूप से मंगल दोष से प्रभावित लोगों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए।

4. धन, करियर और व्यवसाय में उन्नति

कार्य क्षेत्र में सफलता और नए अवसर प्राप्त होते हैं।

5. घर-परिवार में शांति

शिवजी की कृपा से तनाव कम होता है और वातावरण सकारात्मक बनता है।

भौम प्रदोष से जुड़ी महत्वपूर्ण मान्यताएँ

  • लगातार 11 भौम प्रदोष व्रत करने से ऋण मुक्ति होती है।
  • यह व्रत साधकों की मानसिक शक्ति बढ़ाता है।
  • कई लोग इसे जीवन की बड़ी समस्याएँ दूर करने के लिए रखते हैं।
  • शिवजी और मंगलदेव दोनों की कृपा से जीवन में प्रगति आती है।

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निष्कर्ष

Bhaum Pradosh Vrat Katha केवल एक कथा नहीं है, यह एक आध्यात्मिक मार्गदर्शन है जो भक्तों को जीवन के संकटों से मुक्त करता है। इस व्रत का प्रभाव अद्भुत होता है, क्योंकि यह शिवजी और मंगलदेव दोनों की कृपा का संगम है। जो व्यक्ति श्रद्धा, नियम और भक्ति के साथ यह व्रत करता है, उसे जीवन में सुख, समृद्धि, शक्ति और सफलता प्राप्त होती है।

यदि आप भी अपने जीवन में किसी कठिनाई—जैसे धन संकट, विवाह में देरी, भूमि विवाद, करियर बाधाएँ या मंगल दोष—का सामना कर रहे हैं, तो भौम प्रदोष व्रत आपके लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

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