मां पार्वती को भगवान शिव ने क्यों दिया था श्राप? जानें पूरी पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ की जोड़ी को आदर्श जोड़ी माना जाता है।  इनके अगाध प्रेम की गाथाओं का वर्णन तो बहुत मिलता है । भोलेनाथ महान तपस्वी आदियोगी और मां पार्वती दयालु और भक्तों पर अतिशीघ्र प्रसन्न होने वाली। माता पार्वती और भगवान शिव के जुड़ी कई लोक कथाएं और कहानियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। इसी कारण से महिलाएं अखंड सुहाग की लंबी आयु के लिए व्रत रखतीं हैं।  दोनों में अगाध प्रेम होने के बावजूद एक बार माता पार्वती भगवान भोलेनाथ के क्रोध की पात्र बन गई । उस समय  भगवान शिव ने क्रोधित होकर माता पार्वती को मछुआरे के घर जन्म लेने का श्राप दे दिया।

आखिर माता पार्वती से ऐसी क्या गलती हुई थी कि वह शिव के गुस्से का कारण बन गई चलिए बताते है इस कथा के विषय में विस्तार से:-

108 जन्मों की कठोर तपस्या

पौराणिक और कथाओं और मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थी। इसलिए उन्होंने 108 जन्मों तक कठोर तपस्या की और भोलेनाथ को पति के रूप में पा सकी । माता पार्वती एक आदर्श पत्नी रूप में भगवान शिव की हर आज्ञा का पालन करना अपना पति धर्म मानती थी । भगवान शिव उनको जो भी ज्ञान देते उसे बहुत ही तल्लीनता से सुनती थी और उस पर अमल करती थी

एक बार ऐसा कुछ हुआ कि भगवान भोलेनाथ को माता पार्वती पर क्रोध आ गया और उन्होंने माता पार्वती को श्राप दे दिया चलिए बताते हैं यह पूरी कथा:-

सृष्टि के रहस्यों की कथा

भगवान शिव मां पार्वती को ब्रह्म ज्ञान देने के लिए सृष्टि के रहस्यों की कथा सुना रहे थे। कथा के दौरान माता पार्वती का ध्यान सृष्टि कथा से भटक गया और वह दूसरे विचारों में कही खो गए। भगवान भोलेनाथ को इस बात का अहसास हो गया कि माता पार्वती सृष्टि कथा को ध्यान से नहीं सुन रही है। उन्होंने कथा के बीच में माता पार्वती से पूछा कि देवी क्या आप कथा सुन रही हैं लेकिन माता पार्वती ने भगवान शिव को कुछ भी उत्तर नहीं दिया। माता पार्वती के जवाब न देने पर भगवान भोलेनाथ को क्रोध आ गया।  कुछ समय पश्चात जब माता पार्वती की तंद्रा टूटी तो उन्होंने देखा कि भगवान भोलेनाथ बहुत क्रोध में हैं लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

ज्ञान लेते समय ध्यान भंग होना दंडनीय

भगवान भोलेनाथ माता पार्वती से बोले कि शिक्षा या ज्ञान लेते समय ध्यान भंग होना दंडनीय है। भगवान शिव कहते हैं कि शिक्षित होने के बावजूद आपका ध्यान भंग नहीं होना चाहिए था। जब आप अशिक्षित होंगी तभी आपको ज्ञान के मूल्य का अहसास होगा । इसके बाद भगवान शिव ने तुरंत माता पार्वती को श्राप दिया कि उनका जन्म मछुआरों के अशिक्षित परिवार में हो। कहते हैं कि कुछ समय पश्चात ही भगवान शिव का श्राप माता पार्वती को लग गया।

जब मां पार्वती को मछुआरे के घर रहना पड़ा

दरअसल कारण कुछ ऐसा बना कि माता पार्वती को किसी वजह से मछुआरों के गांव में जाना पड़ गया। इस गांव के मुखिया को कोई संतान नहीं थी। एक दिन वह मुखिया तालाब से मछली पकड़ने जा रहा था तो उसने एक बच्ची को रास्ते में पेड़ के तले बैठा हुआ देखा। मुखिया ने बच्ची के रूप में माता पार्वती के माता-पिता की बहुत खोजबीन की लेकिन उनका कुछ पता नहीं चला। बच्ची के मिलने पर मछुआरा बहुत खुश हो गया और बच्ची देने के लिए भगवान को धन्यवाद । मछुआरा बच्ची को लेकर अपने घर चला गया और उसका पालन पोषण करने लगा। इस तरह से मां पार्वती को एक मछुआरिन के रूप में रहना पड़ा।

ज्ञान एकाग्रचित होकर ग्रहण करना चाहिए

इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जब भी कोई महापुरूष, संत, ज्ञानी, और शिक्षक हमें ज्ञान दे रहा हो तो हमें उस ज्ञान को ग्रहण करने के लिए एकाग्रचित होकर ग्रहण करना चाहिए। सुनना चाहिए और उस पर अमल करना चाहिए।

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