सफला एकादशी (saphala ekadashi) पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु की उपासना कर व्रत रखा जाता है। यह साल की आखिरी एकादशी होती है और इसके पालन से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा उसे अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।

सफला एकादशी (saphala ekadashi) 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
तिथि: सोमवार, 15 दिसंबर 2025
एकादशी प्रारंभ: 14 दिसंबर 2025, रात्रि 8:46 बजे
समापन: 15 दिसंबर 2025, रात 10:09 बजे
पारण (व्रत खोलने का समय): 16 दिसंबर, सुबह 6:30 बजे से 8:45 बजे के बीच
सफला एकादशी (saphala ekadashi) का महत्व
शास्त्रों में सफला एकादशी (saphala ekadashi) को वर्ष की सबसे शुभ एकादशी कहा गया है। यह व्रत जीवन में सफलता, समृद्धि और मोक्ष प्रदान करता है। जो व्यक्ति श्रद्धा से उपवास करता है, उसके सभी अटके कार्य सिद्ध होते हैं।
भगवान विष्णु को इस दिन केले, तुलसी दल, चंदन और पीले पुष्प अर्पित करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) का महत्व भी इसी प्रकार मोक्ष प्रदान करने वाला व्रत माना जाता है।
सफला एकादशी (saphala ekadashi) व्रत विधि
- प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर के मंदिर की सफाई कर गंगाजल से शुद्धिकरण करें।
- भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाएं।
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें।
- व्रत का संकल्प लें और दिनभर फलाहार या निर्जल व्रत रखें।
- संध्या के समय विष्णु चालीसा और आरती करें।
रात्रि में भगवान विष्णु को खीर, पंजीरी, या बेसन लड्डू का भोग लगाएं। अगले दिन पारण के समय ब्राह्मण को भोजन कराकर दान करें।
सफला एकादशी (saphala ekadashi) व्रत कथा
प्राचीन कथा के अनुसार चंपावती नामक नगर में महिष नाम का राजा था जो पापी और अत्याचारी था। एक बार उसके राज्य में ब्राह्मणों और संतों के श्राप से उसके सारे सुख नष्ट हो गए।
एक दिन वह भूख-प्यास से व्याकुल होकर जंगल में भटक रहा था। संयोगवश उस दिन सफला एकादशी (saphala ekadashi) थी। उसने अनजाने में कुछ फल भगवान विष्णु को अर्पित किए, जिससे उसका उद्धार हुआ और उसे मोक्ष प्राप्त हुआ।
इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि सफला एकादशी (saphala ekadashi) व्रत से मनुष्य का जीवन सफल बनता है।
रात के अंधेरे में एक राजा जंगल में भटक रहा था। भूख-प्यास से व्याकुल होकर उसने एक पीपल के नीचे गिरे फल भगवान विष्णु को चढ़ा दिए। वह दिन था सफला एकादशी (saphala ekadashi)। प्रभु की कृपा से उसका उद्धार हुआ। यह कथा सिखाती है — एक सच्चे भाव से किया गया छोटा सा कार्य भी ईश्वर तक पहुँच जाता है।
सफला एकादशी (saphala ekadashi) के नियम और निषेध
- इस दिन चावल का सेवन वर्जित है।
- तामसिक भोजन, क्रोध और असत्य वचन से दूर रहें।
- भगवान विष्णु और तुलसी माता की पूजा अवश्य करें।
- गरीबों को पीले वस्त्र, फल और मिठाई का दान करना शुभ माना गया है।
आप चाहें तो उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) व्रत विधि भी जान सकते हैं, जो वर्ष के प्रारंभिक व्रतों में से एक है।
सफला एकादशी (saphala ekadashi) और तुलसी पूजा
तुलसी माता को इस दिन विशेष रूप से पूजना चाहिए। तुलसी को गंगाजल, रोली, चंदन और चुनरी अर्पित करें।
मान्यता है कि तुलसी पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
सफला एकादशी (saphala ekadashi) और अन्य पवित्र पर्व
यह व्रत गीता जयंती और दत्तात्रेय जयंती (dattatreya jayanti) जैसे आध्यात्मिक पर्वों की तरह व्यक्ति को आत्मिक जागृति और ज्ञान प्रदान करता है।
इन सभी पर्वों का उद्देश्य है — जीवन में धर्म, आस्था और सकारात्मकता को बढ़ाना।
सफला एकादशी (saphala ekadashi) का उद्देश्य
इस व्रत का उद्देश्य केवल फल प्राप्ति नहीं, बल्कि मन की पवित्रता और आत्मा का उत्थान है।
जो व्यक्ति इस दिन उपवास करता है, उसके मन में शांति और भगवान के प्रति गहरा विश्वास उत्पन्न होता है।
जब तुम सफला एकादशी (saphala ekadashi) का व्रत करते हो, तो केवल उपवास नहीं करते — बल्कि अपने भीतर के नकारात्मक विचारों को त्यागते हो। इस दिन तुम्हारी साधना तुम्हें शांति और आत्मिक बल देती है। भगवान विष्णु को केले और तुलसी अर्पित करते समय तुम्हारे भीतर की श्रद्धा ही तुम्हें सफलता की ओर ले जाती है।
सफला एकादशी (saphala ekadashi) से जुड़े सवाल (FAQs)
सफला एकादशी (saphala ekadashi) 2025 में कब है?
सफला एकादशी (saphala ekadashi) 2025 में सोमवार, 15 दिसंबर को मनाई जाएगी। यह तिथि पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य मिलता है।
सफला एकादशी (saphala ekadashi) का क्या महत्व है?
सफला एकादशी (saphala ekadashi) का महत्व यह है कि इस व्रत के पालन से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन में सफलता, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह एकादशी वर्ष की अंतिम एकादशी मानी जाती है, जो जीवन को शुभता से भर देती है।
सफला एकादशी (saphala ekadashi) की पूजा कैसे की जाती है?
इस दिन प्रातः स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें, दीपक जलाएं, और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें। व्रत के दौरान फलाहार रखें और रात में विष्णु चालीसा या आरती करें। अगले दिन पारण के समय ब्राह्मणों को भोजन व दान दें।
सफला एकादशी (saphala ekadashi) पर क्या नहीं करना चाहिए?
इस दिन चावल का सेवन वर्जित है। तामसिक भोजन, झूठ, क्रोध और दूसरों का अपमान करने से बचना चाहिए। व्रत के दौरान केवल सात्विक आहार, ध्यान और भक्ति पर ध्यान केंद्रित करें।
सफला एकादशी (saphala ekadashi) व्रत कथा क्या है?
कथा के अनुसार, चंपावती नगर का पापी राजा महिष अनजाने में सफला एकादशी (saphala ekadashi) के दिन भगवान विष्णु को फल अर्पित करता है, जिससे उसका उद्धार होता है। यह कथा सिखाती है कि श्रद्धा से किया गया छोटा-सा कार्य भी व्यक्ति को मोक्ष दिला सकता है।
सफला एकादशी (saphala ekadashi) के ब्लॉग का निष्कर्ष
सफला एकादशी (saphala ekadashi) व्रत जीवन में सफलता, समृद्धि और मोक्ष का द्वार खोलता है। यह दिन हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति कर्म और संयम से होती है।
भक्ति, श्रद्धा और सेवा — यही सफला एकादशी (saphala ekadashi) का संदेश है।
