मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) 2025: मोक्ष प्राप्ति का पवित्र व्रत और गीता जयंती का उत्सव

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) कहा जाता है। यह दिन भगवान विष्णु की उपासना और मोक्ष की प्राप्ति के लिए समर्पित है। इस एकादशी को भगवद गीता के उपदेश दिवस — गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

mokshada ekadashi
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मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) का अर्थ और महत्व

‘मोक्षदा’ शब्द का अर्थ है मोक्ष प्रदान करने वाली। इस दिन व्रत और उपवास करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं और आत्मा को शांति तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

शास्त्रों में कहा गया है कि मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) व्रत का फल अश्वमेध यज्ञ के समान होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा कर, गीता का पाठ करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।

यह व्रत केवल स्वयं के लिए नहीं, बल्कि पितरों के मोक्ष के लिए भी किया जाता है। व्रत का पुण्य उन्हें समर्पित करने से उनके पापों का नाश होता है।

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

  • तिथि प्रारंभ: 30 नवंबर 2025, रविवार, रात्रि 9:29 बजे
  • तिथि समाप्त: 1 दिसंबर 2025, सोमवार, रात्रि 7:01 बजे
  • व्रत का दिन: सोमवार, 1 दिसंबर 2025
  • पारण तिथि: 2 दिसंबर 2025,  सुबह 6:51 बजे से 9:04 बजे तक

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) की पूजा विधि

  1. प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
  2. भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को पीले वस्त्रों से सजाएँ।
  3. तुलसी दल, पंचामृत, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
  4. पूरे दिन विष्णु सहस्रनाम या ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
  5. रात्रि में जागरण कर गीता पाठ करें।
  6. द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएँ और चावल का दान करें।

इस दिन चावल खाना वर्जित माना गया है क्योंकि यह व्रत की पवित्रता को प्रभावित करता है।

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) व्रत कथा

पुराणों के अनुसार, चंपक नगर नामक राज्य में राजा वैखानस राज करते थे। एक दिन उन्हें स्वप्न में अपने पिता नर्क में पीड़ित दिखाई दिए। उन्होंने मुनि से उपाय पूछा। मुनि ने कहा – “राजन! मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसे मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) कहते हैं। उस दिन व्रत रखकर अपने पिता को उसका पुण्य अर्पित करो।” राजा ने व्रत किया, और उस पुण्य से उनके पिता को नरक से मुक्ति मिली। इसलिए इसे पितृ मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी भी कहा गया है।

राजा वैखानस ने स्वप्न में अपने पिता को कष्ट में देखा। मुनि ने उन्हें मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) व्रत का निर्देश दिया। उन्होंने श्रद्धा से व्रत किया और पिता को नरक से मुक्ति मिली। तभी से इस दिन को मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया।

गीता जयंती और मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) का संबंध

इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को भगवद गीता का दिव्य उपदेश दिया था। इसलिए मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) को गीता जयंती के रूप में मनाया जाता है।
गीता का पाठ करने से जीवन में ज्ञान, धर्म, और मोक्ष की दिशा मिलती है।

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मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) के नियम और वर्जनाएं

  • इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • तामसिक भोजन और नशा से दूर रहें।
  • दूसरों का दिल न दुखाएँ, दान-दक्षिणा करें।
  • तुलसी का पौधा लगाएँ या जल दें।

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) का पारण

द्वादशी तिथि में पारण करना शुभ माना गया है।
सुबह स्नान कर विष्णु जी की आरती करें और चावल, गुड़ व वस्त्र दान करें।
इसके बाद सात्विक भोजन ग्रहण करें।

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) का धार्मिक लाभ और महत्व

  1. पापों का नाश होता है।
  2. पितरों को मुक्ति मिलती है।
  3. आत्मा को वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
  4. जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

इस व्रत से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है।

आप जब मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) का व्रत रखते हैं, तो यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रहता। यह आत्मशुद्धि, कर्म सुधार और आत्मा के मोक्ष की दिशा में आपका पहला कदम बन जाता है। इस दिन गीता का पाठ करें, भगवान विष्णु की आराधना करें और पितरों को स्मरण कर पुण्य समर्पित करें — यही सच्ची मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) की भावना है।

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) का सांस्कृतिक संदर्भ और भावार्थ

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि जीवन के कर्म और फल के सिद्धांत को दर्शाती है।
यह हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और निष्ठा से किया गया व्रत व्यक्ति को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों रूप से उन्नत बनाता है।

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मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) से जुड़े सवाल (FAQs)

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) का मतलब क्या होता है?

‘मोक्षदा’ का अर्थ होता है — मोक्ष प्रदान करने वाली। यह व्रत आत्मा को पापों से मुक्त कर वैकुंठ धाम की प्राप्ति करवाने वाला माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना और उपवास से व्यक्ति को मोक्ष का आशीर्वाद मिलता है।

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) 2025 में कब है?

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) वर्ष 2025 में सोमवार, 1 दिसंबर 2025 को मनाई जाएगी। तिथि 30 नवंबर की रात्रि 9:29  बजे से शुरू होकर 1 दिसंबर की दोपहर रात्रि 7:01 बजे तक रहेगी।

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) को गीता जयंती क्यों कहा जाता है?

इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया था। इसलिए यह दिन “गीता जयंती” के रूप में भी मनाया जाता है। गीता का पाठ इस दिन विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) पर क्या करना चाहिए?

प्रातः स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें, भगवान विष्णु की पूजा करें, तुलसी दल चढ़ाएँ और पूरे दिन गीता का पाठ करें। रात में जागरण करें और द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर पारण करें।

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) पर क्या नहीं खाना चाहिए?

इस दिन चावल और तामसिक भोजन वर्जित होता है। व्रत रखने वाले व्यक्ति को सात्विक भोजन, फलाहार या निर्जल उपवास करना चाहिए। शराब, मांस और लहसुन-प्याज जैसे पदार्थों से दूर रहें।

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) के ब्लॉग का निष्कर्ष

मोक्षदा एकादशी (mokshada ekadashi) आत्मा के उत्थान और मोक्ष की राह दिखाने वाला पावन पर्व है। भगवान विष्णु की कृपा से इस व्रत को करने वाला भक्त पापों से मुक्त होकर दिव्य जीवन की ओर अग्रसर होता है।

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