उत्पन्ना एकादशी(utpanna ekadashi) 2025: तिथि, पूजा विधि, कथा और महत्व

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) हिंदू धर्म की उन महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक है, जो मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में आती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इस दिन देवी एकादशी की उत्पत्ति मानी जाती है। साल 2025 में उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) की तिथि 15 नवंबर (शनिवार) को है। पारण 16 नवंबर, रविवार को सूर्योदय के बाद किया जाएगा।

utpanna ekadashi
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उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) क्यों मनाई जाती है?

पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में थे, तब मुर नामक राक्षस ने देवताओं को परेशान किया। उस समय भगवान की देह से देवी एकादशी का जन्म हुआ और उन्होंने मुर राक्षस का वध किया। उसी दिन से यह तिथि उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह व्रत अंधकार, भय और नकारात्मकता के नाश का प्रतीक माना जाता है।

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) व्रत विधि

  1. प्रातःकाल स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करें।
  2. शुद्ध घी का दीपक जलाएं और तुलसी पत्र चढ़ाएं।
  3. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें।
  4. पूरे दिन उपवास रखें और रात्रि में एकादशी कथा सुनें।
  5. अगले दिन सूर्योदय के बाद द्वादशी तिथि में व्रत का पारण करें।

विष्णु जी के साथ-साथ देवी एकादशी की भी पूजा करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

रमेश हर साल उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) का व्रत रखता था, लेकिन एक वर्ष उसने मन से पूजा की — बिना किसी दिखावे के। उसी रात उसने स्वप्न में देखा कि भगवान विष्णु उसे आशीर्वाद दे रहे हैं। अगले दिन उसके जीवन में बड़ा परिवर्तन आया — उसे वर्षों से रुके कार्य में सफलता मिली। यह कहानी बताती है कि उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) का व्रत केवल अनुष्ठान नहीं, आत्मविश्वास और विश्वास का संगम है।

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) का महत्व

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभ है जो संकटों, भय या मानसिक अशांति से गुजर रहे हों। यह तिथि देवउठनी एकादशी के बाद आती है और चार धाम यात्रा के भक्तों के लिए भी पवित्र मानी जाती है। आप छोटा चार धाम (chota char dham) और पंच केदार (panch kedar) के बारे में अधिक जान सकते हैं, जो भगवान विष्णु और शिव की महिमा से जुड़े हैं।

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) और भगवान विष्णु की कृपा

यह व्रत उन सभी के लिए महत्वपूर्ण है जो जीवन में नई शुरुआत, आत्मशुद्धि और शांति की तलाश में हैं। भक्ति से किया गया व्रत व्यक्ति को आत्मिक ऊर्जा और स्थिरता प्रदान करता है। इस एकादशी पर देव दीपावली (dev deepawali) जैसे पर्वों की भांति पूजा करने से घर में दिव्यता और समृद्धि का वास होता है।

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) की कथा

कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने मुर नामक असुर का वध किया, तो उन्होंने देवी से कहा— “तुम्हारा जन्म एकादशी तिथि को हुआ है, अतः तुम ‘उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi)’ नाम से पूजित होगीं। जो भी तुम्हारा व्रत करेगा, वह मेरे भक्तों में श्रेष्ठ होगा।” इसलिए भक्तगण इस दिन उपवास रखते हैं, कथा सुनते हैं और प्रभु विष्णु से क्षमा एवं मोक्ष की प्रार्थना करते हैं।

उत्पन्ना एकादशी का पारण का समय और नियम

व्रत के दूसरे दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। पारण के समय सात्विक भोजन जैसे दूध, फल, चावल और गुड़ का सेवन करना शुभ माना गया है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाए तो पारण सूर्योदय से पहले ही करना चाहिए।

जब तुम उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) के दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हो, तो यह केवल एक परंपरा नहीं रहती — यह तुम्हारे भीतर की शांति को जगाने का माध्यम बन जाती है। व्रत और कथा के माध्यम से तुम अपने पापों से मुक्त होकर नई ऊर्जा प्राप्त करते हो। इस दिन तुम्हारे हर संकल्प में दिव्यता समा जाती है — और यही उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) का सच्चा अर्थ है।

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) से जुड़े सवाल (FAQs)

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) 2025 में कब है?

साल 2025 में उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) का व्रत शनिवार, 15 नवंबर 2025 को रखा जाएगा।
एकादशी तिथि का प्रारंभ 15 नवंबर की रात्रि 12:49 मिनट से होगा और समाप्ति 16 नवंबर की रात 2:37 मिनट पर होगी। पारण 16 नवंबर, रविवार को सूर्योदय के बाद किया जाएगा।

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) क्यों मनाई जाती है?

यह एकादशी इसलिए मनाई जाती है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु की देह से देवी एकादशी का जन्म हुआ था। देवी ने मुर नामक राक्षस का वध किया था, इसलिए इसे “उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi)” कहा गया। यह व्रत पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) की पूजा कैसे की जाती है?

इस दिन प्रातः स्नान के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें, तुलसी पत्र चढ़ाएं और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें। उपवास रखें, रात्रि में एकादशी कथा सुनें और द्वादशी के दिन पारण करें। पूजा के समय घी का दीपक और धूप जलाना शुभ माना जाता है।

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) व्रत करने के क्या लाभ हैं?

इस व्रत से मनुष्य के सभी पाप नष्ट होते हैं और उसे आध्यात्मिक शांति, धन, सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) का व्रत करने से जीवन की नकारात्मकता और भय समाप्त होते हैं।

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) का पारण कब और कैसे किया जाता है?

व्रत का पारण द्वादशी तिथि के सूर्योदय के बाद किया जाता है। पारण करते समय सात्विक भोजन जैसे फल, दूध, गुड़ या चावल का सेवन करें। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाए, तो पारण सूर्योदय से पहले ही करना चाहिए।

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) के ब्लॉग का निष्कर्ष

उत्पन्ना एकादशी (utpanna ekadashi) न केवल एक धार्मिक व्रत है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, नकारात्मकता से मुक्ति और मोक्ष की ओर पहला कदम भी है। इस दिन भगवान विष्णु और देवी एकादशी की आराधना करने से हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।

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