Raksha Bandhan: प्रेम, सुरक्षा और संस्कार का पावन पर्व

Raksha Bandhan हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र, पावन और भावनात्मक पर्व है, यह पर्व भाई-बहन के अगाध प्रेम, सुरक्षा और विश्वास के रिश्ते को समर्पित है। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। Raksha Bandhan पर बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बांधकर उनके सुख, समृद्धि और लंबी उम्र की कामना करती हैं । बदले में भाई अपनी बहन की ताउम्र रक्षा करने का वचन देते हैं।
Raksha Bandhan की परंपरा कब और कैसे शुरू हुई? इसको लेकर पौराणिक और ऐतिहासिक कई कथाएं हैं जो इस प्रकार हैं
वेदों में उल्लेख (सबसे पुराना प्रमाण)
ऋग्वेद के मंत्रों में “रक्षा सूत्र” का वर्णन मिलता है। प्राचीन समय में यज्ञ के दौरान ऋषि-मुनि अपने शिष्यों या यजमानों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते थे, ताकि वे बुरी शक्तियों से सुरक्षित रहें। यही रक्षासूत्र कालांतर में राखी बन गया।
इंद्र-इंद्राणी कथा (दैविक परंपरा)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब राक्षकों ने देवताओं पर हमला किया और इंद्र देव युद्ध में कमजोर पड़ने लगे, तब उनकी पत्नी इंद्राणी ने एक पवित्र धागा अभिमंत्रित कर उनकी कलाई पर बांध दिया । इससे इंद्र को शक्ति मिली और उन्होंने विजय प्राप्त की। तब से यह परंपरा रक्षा के लिए राखी बांधने की शुरू हुई।
कृष्ण और द्रौपदी की कथा (महाभारत काल)
महाभारत में वर्णन है कि एक बार श्रीकृष्ण को युद्ध के दौरान उंगली में चोट लगी। यह देख द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर कृष्ण के घाव पर बांध दिया। यह भावनात्मक रक्षा सूत्र था। बदले में श्रीकृष्ण ने वचन दिया कि वे जीवन भर उसकी रक्षा करेंगे । कहते हैं कि जब दुशासन द्रौपदी का चीर हरण कर रहा था तो और उन्होंने चीरहरण के समय उसे बचाया।
रानी कर्णावती और हुमायूं (ऐतिहासिक प्रसंग)
16वीं शताब्दी में जब चित्तौड़ की रानी कर्णावती को गुजरात के बहादुर शाह से युद्ध का डर था, तो उन्होंने मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजी। हुमायूं ने राखी स्वीकार कर उन्हें बहन मान लिया और उनकी रक्षा के लिए सेना लेकर चित्तौड़ पहुँच गया। यह घटना दर्शाती है कि राखी सिर्फ हिंदुओं तक सीमित नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक भी है।
Raksha Bandhan का धार्मिक और सामाजिक महत्व
यह पर्व रक्षा, कर्तव्य और स्नेह का प्रतीक है। राखी को शुभता, शक्ति और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इस दिन श्रावण पूर्णिमा स्नान, पूजा, और दान का भी विशेष महत्व है। यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को सुदृढ़ करता है। राखी बहनें केवल अपने सगे भाइयों को ही नहीं, बल्कि रक्षात्मक भावनाओं वाले किसी भी पुरुष को बांध सकती हैं — जैसे सैनिक, गुरु, मित्र आदि। इससे समाज में विश्वास, सुरक्षा और सम्मान की भावना प्रबल होती है।
Raksha Bandhan कैसे मनाया जाता है? (परंपराएं और रीति-रिवाज)
बहनें थाली सजाती हैं जिसमें राखी, अक्षत, कुमकुम, दीपक और मिठाइयाँ होती हैं। भाई को तिलक लगाकर, आरती उतारकर उसकी कलाई पर राखी बांधी जाती है। फिर बहन मिठाई खिलाती है और भाई उसे उपहार या नकद देता है। परिवार में खुशियों का वातावरण बनता है, घर में पकवान बनते हैं और रिश्तेदारों का मिलन होता है।
Raksha Bandhan का आधुनिक स्वरूप
आज के समय में Raksha Bandhan सिर्फ पारंपरिक नहीं रह गया है इसमें नई सोच और तकनीक का समावेश हो गया है । डिजिटल राखियां और ऑनलाइन गिफ्टिंग से दूर बैठे भाई-बहन भी जुड़ रहे हैं। कुछ महिलाएं सैनिकों को राखी भेजती हैं ताकि राष्ट्ररक्षा करने वालों को सम्मान मिले। स्कूल-कॉलेजों और संस्थाओं में भी राखी कार्यक्रम आयोजित होते हैं, जिससे एकता और भाईचारे को बढ़ावा मिलता है। आज राखी का रिश्ता जाति, धर्म, वर्ग से ऊपर उठकर मानवता का संदेश दे रहा है।
निष्कर्ष (Conclusion)
Raksha Bandhan केवल एक पर्व नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा, प्रेम, और जिम्मेदारी का अद्भुत संगम है। यह हमें सिखाता है कि रिश्ते केवल खून से नहीं, भावनाओं से बनते हैं। यह पर्व सुरक्षा, विश्वास और स्नेह की डोर से पूरे समाज को जोड़ता है।
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